Tuesday, October 13, 2015

लक्ष्मीस्तुतिः

मेया मा या दिनमनुदिनं शोभनं कुर्वती नो
यामे यामा प्रतिपदमहो दैवतं भाग्यमीडा ।
वामे स्थित्वा सकलजगतां सम्पदं प्रापयन्ती
मेवा स्थित्वा हृदयकमले शान्तिदा राजतां सा ॥१॥

जो लक्ष्मी हर दिन हम लोकों को मङ्गल करने वाली, हर समय भक्तों के मोक्ष प्राप्ति के साधन के रूप में उपस्थित होनेवाली, हम लोकों के भाग्य की देवी और स्तुति के योग्य​, भगवान् के वाम भाग में रहकर सभी लोकों को ऐश्वर्य देनेवाली सेवा के योग्य, शान्ति देनेवाली वह लक्ष्मी हमारे हृदय कमल में विराजमान हो ॥ 

मेया=ज्ञेया, यामा=यामो गमनसाधनः मोक्षप्राप्ति रूप गमन में साधन के रूप में रहनेवाली । लक्ष्म्याः पुरुषकारेण एव मोक्षः इति सिद्धान्तः रामानुजीयानाम् । मेवा=मेव सेवने इत्यस्मात् मेवते सेवते (हरिं) इति मेवा लक्ष्मीः ॥

Who does welfare every day to us and who is to be known, in each step of us who helps to attain liberation, who is our destiny, to be prayed and Goddess, who gives us all wealth having seated on the right side of Bhagavan, who serves Hari and who gives peace to us that Lakshmi be seated in my heart-lotus. 

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