Thursday, March 12, 2015

॥ श्री राम जी की पितृ भक्ति ॥

॥ श्री राम जी की पितृ भक्ति ॥

योगेन लभ्यो यः पुंसां संसारापेतचेतसाम् ।
नियोगेन पितुः सोऽयं रामः कौशिकमन्वगात् ॥ (चम्पूरामायणम्-३५)

यः योगेन एव प्राप्तुं शक्यः, किं सः कस्यचित् नियोगेन कार्यं कार्यं कुर्यात्? आश्चर्यं करोति इति। कोऽयम्? अपरः कः! श्रीरामः एव​। अस्मात् संसारात् पराङ्मुखमनोभिः सः भगवान् योगेन एव प्राप्तुं शक्यते । तादृशः परमपुरुषः श्रीरामः पितुः दशरथस्य नियोगेन (आज्ञया) विश्वामित्रम् अनुगच्छति स्म​। किं विचित्रम् एतत्!

योग से अर्थात् उपासना से ही प्राप्त होनेवाला क्या किसी की आदेश पालन कर सकता है? आश्चर्य की बात् है ऐसा ही करता है? कौन​? दूसरा कौन है! यह तो श्रीराम ही है। इस संसार से विरक्तमानस वालों के द्वारा योग से अर्थात उपासना से ही प्राप्तहोनेवाला है वह परमात्मा । वह परम पुरुष श्रीराम अपने पिता के आदेश से विश्वामित्र के पीछे चल पडे। कितना आश्चर्य का विषय है!

विशेष - १) संसारापेतचेतसाम् - संसार से अपेतं = संसारापेतं, संसारापेतं चेतः यस्य सः = संसारापेतचेताः (सकारान्त शब्द है नचिकेतस् जैसे), तेषां संसारापेतचेतसाम् । संसार से अलग हुए चेत (मनः) जिन लोगों के हैं - वे ॥ २) अन्वगात् - अनु-उपसर्गपूर्वक गम​-धातु का लुङ्लकारे प्रथपुरुष एकवचन है ।

Who is obtained only by Yoga, could he obey the orders of others? Surprisingly one does so! Who is that? It is none other than Sri Rama! That Supreme God is obtained by Yoga only by those who renounced this world. Such an Almighty Sri Rama obeying his father Dasharatha’s order followed Vishvamitra.

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