होलिका का वेद
प्रमाण
होलाकादेः व्यवस्था
स्यात् साधारण्यम् उताग्रिमः ।
देशभेदेन दृष्टत्वात्
साम्यं मूलसमत्वतः ॥ (जै.न्या.वि.१-३-८-२६)
होलाका त्यौहार मनाना या
नहीं? इस प्रश्न का उत्तर
है कि जैसे हारित, गौतम आदि विभिन्न
स्मृतियां उस के कर्ता के भिन्न होने से भी प्रमाण माना जाता है वैसे ही होलाका
पर्व भी पहले से ही कुछ शिष्टों के द्वारा पालन करते आने के कारण प्रमाण माना जाना
चाहिए ।
इस में शंका क्यों हुई? इस लिए कि यह पर्व कुछ
प्रान्त में अनुष्ठान में है । होलाका पूर्व देश निवासी ही करते है । होलाका, होली, होलिका सब समान है और यह
वसन्त उत्सव का प्रतीक है । वैसे दक्षिण
में स्थावर देवताओं की पूजा करते है । उद्वृषभयज्ञ (बैल को पूजा करके उसे दौडाने
को उद्वृषभयज्ञ कहते है) उत्तर प्रान्त में ही करते हैं । इसी प्रकार हारित आदि
ऋषियों द्वारा प्रणीत स्मृतियां न सभी प्रान्त में अनुष्ठान में हैं । ऐसी स्थिति
में प्रान्त विशेष में व्यवहार में रहनेवाले आचार कैसे “सभी प्रान्तों के लिए” ऐसे सामान्यीकरण कर सकते है? इस लिए ये सभी होलाका
पर्व आदि प्रमाण नहीं है - ऐसा पूर्व पक्ष है ।
इस का जवाब इस प्रकार है
- इस विषय में प्रान्त विशेष में प्रमाण क्यों मानते है। वह इस लिए कि उन
प्रान्तों में शिष्टों के द्वारा उन पर्वों का आचरण करते आने के कारण । ठीक है, शिष्टों के आचरण को क्यों प्रमाण मानना? इस लिए वे शिष्ट
कहलाते हैं क्यों कि वे वेद में कहे गये विषयों का ही आचरण करते हैं । उन के कुछ
आचरणों के मूल वेद उपलब्ध होता है, कुछ के नहीं है । जिन आचरणों के मूल उपलब्ध नहीं है, वहां यह अनुमान किया जाता
है कि निश्चित ही उन के मूल उपलब्ध न होने पर भी अनुपलब्ध वेद शाखाओं में होंगें ।
जब आचरण के मूल वेद मानते है तब उस आचरण को कैसे अप्रामाणिक कह सकते हैं । अतः
होलाका आदि का भी शिष्टों के द्वारा पालन किया जाता है और उस आचरण मूल वेद वाक्य
कहीं न कहीं निश्चित होगा, इस कारण से प्रान्त
विशेष से आचरण करने वाली होली भी प्रामाणिक है ॥
प्राच्यादिपदयुक्तायाः
श्रुतेः अनुमितौ पदे ।
अर्थ-अबोधाद् अमात्वं
चेत्, न सामान्यानुमानतः
॥(जै.न्या.वि.१-३-८-२७)
मीमांसादर्शन में मुख्य
रूप से दो भेद है - प्राभाकर और भाट्ट नाम से । अब भाट्टों (इनहें गुरुमत भी कहते
है) का मत प्रस्तुत करते है । अगर किसी प्रान्त विशेष में शिष्टों के द्वारा
अनुष्ठित आचरण प्रमाण है तो वह इस लिए कि उस प्रान्त विशेष के साथ् वेद वाक्य का
अनुमान किया गया । अर्थात् होलाका पूर्व दिशा में अनुष्ठान में है तो उस के प्रमाण
के रूप में अनुमान किया जानेवाले मूल वेद वाक्य में "पूर्व दिशा" का
अनुमान करना पडेगा । ऐसा करेंगें तो यह अव्यवस्था होगी कि आज जो पूरब में रहते हैं
वे कल पश्चिम चले जाने पर अपने मूल प्रान्त का आचरण छोडेंगें नहीं । इस लिए यह
अनुमान किया गया "पूर्व दिशा" युक्त वेद वाक्य निरर्थक हुआ क्यों कि यह
आचरण पूरब में ही नहीं अन्य प्रान्तों में भी (पूरब के लोगों के पुनर्वास से) होता
है । इस लिए यह स्मृति (अनुमित) प्रमाण नहीं माना जा सकता है - ऐसा पूर्व पक्ष है
। इस का जवाब यह देते हैं कि वेद वाक्य का अनुमान सामान्य रूप से करने से यह दोष
नहीं है अर्थात अनुमान किये जाने वेद वाक्य में मात्र होलाका का अनुष्ठान का ही
उल्लेख रहेगा न कि पूरब आदि देश विशेषों का ॥
इस प्रकार होलाका का
अनुष्ठान वेद प्रमाण से सिद्ध, इस लिए इस का आचरण न दोषाय बल्कि वेद विहित ही है ॥
The issue of whether Holi Festival is to be observed or not is discussed in
Mimamsa Shastra. First let us see the Purvapaksha. This festival is not
authentic. Because this is being observed by the people in the East. If
something is observed in a particular part, how could it be authentic? In reply,
it is concluded with the following argument. If a festival is observed by the
shishtas of a particular part, it might have some source. So first we have to
find out that Vedic source. If we fail in finding out the source, we cannot
simply say that it is not authentic. As the shishtas always observe which is
prescribed by Veda. So we have to infer such a Vedic source from which this
observance come into effect. Thus, observance of shishtas is authentic as it
might have some vedic source. Hence, there is no fault in observing Holaka
festival.
In Mimamsa there are two main branches one is Prabhakara School and the
other is Bhatta School (this is also known as Guru Branch). Their stand also in
this context is the same. However, their argument differs a little. If the
authenticity is to be established, then the source Veda Vakya is to be
inferred. If this festival is observed only in the East, then the inferred
source Veda Vakya also should contain this aspect. That is “Holaka is observed
in the East”. If we infer in such a way, then there arises one issue. That is a
person who lives in the East today may migrate to the West or North. But he
would not discard the observance of Holaka. In that case, the word “East”
inferred in the source Veda Vakya becomes meaningless. Hence, the observance
also becomes invalid. In reply to this objection, Bhattas say that the source
Veda Vakya is inferred in general and not with East or West. Then it is
faultless and anybody who had the tradition could observe this festival.
Thus, the Holaka (Holi or Holika) is authentic could be observed by
tradition.
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