Friday, February 20, 2015

॥ स्वाहा का प्रयोग ॥

॥ स्वाहा का प्रयोग ॥

दक्षस्याहं प्रिया कन्या स्वाहा नाम महाभुज |
बाल्यात्प्रभृति नित्यं च जातकामा हुताशने ||||
न च मां कामिनीं पुत्र सम्यग्जानाति पावकः |
इच्छामि शाश्वतं वासं वस्तुं पुत्र सहाग्निना ||||
स्कन्द उवाच||
हव्यं कव्यं च यत्किञ्चिद्द्विजा मन्त्रपुरस्कृतम् |
होष्यन्त्यग्नौ सदा देवि स्वाहेत्युक्त्वा समुद्यतम् ||||
अद्य प्रभृति दास्यन्ति सुवृत्ताः सत्पथे स्थिताः |
एवमग्निस्त्वया सार्धं सदा वत्स्यति शोभने ||||
(महाभारते आरण्यकपर्वणि)


स्वाहा स्कन्दम् एवं प्रार्थयते - हे महाभुज (स्कन्द​) ! अहं दक्षस्य स्वाहा नाम प्रिया कन्या ।  बाल्यात् प्रभृति नित्यं च हुताशने जातकामा (अस्मि) । हे पुत्र ! पावकः कामिनीं मां संयक् न च जानाति । पुत्र ! अग्निना शाश्वतं वासं वस्तुं इच्छामि ।

स्कन्दः उत्तरं ददाति इत्थम् - हे देवि ! द्विजाः मन्त्रपुरस्कृतं यत्किञ्चित् हव्यं कव्यं च समुद्यतम् अग्नौ होष्यन्ति, सुवृत्ताः सत्पथे स्थिताः अद्य प्रभृति सदा "स्वाहा" इति उक्त्वा दास्यन्ति । शोभने (मातः) ! एवम् अग्निः त्वया सार्धं सदा वत्स्यति ॥

अतः ततः प्रभृति होमादिकाले "स्वाहा" इति उच्चार्य द्रव्यत्यागः क्रियते यजमानैः ॥

विशेषः
१) महान्तौ भुजौ यस्य सः = महाभुजः । विशाल स्कन्धवाले, यहां पर स्कन्द है ।
२) जातः कामः यस्याः सा = जातकामा । जिस की प्यार हुई वह, यहां पर स्वाहा ।
३) हुताशनः, पावकः ये सब अग्नि के नाम हैं ।
४) शाश्वतं = निरन्तरम्
५) हव्यं कव्यं = याग में आहुति के रूप में देनेवाले पक्व या अपक्व द्रव्य ।

हे महाभुज ! (स्कन्द​) मैं दक्ष की लाडली कन्या स्वाहा हूं । मैं बाल्य से ही अग्नि से अत्यन्त प्यार करती थी । किं तु अग्नि इस बात को ठीक नहीं जानते थे कि मैं उस से प्यार करती हूं । मैं अग्नि के साथ हमेशा वास करना चाहती हूं ॥

स्कन्द ने जबाब दिया कि आज के बाद जो ब्राह्मण लोक मन्त्र के साथ "स्वाहा" कहकर ही जो कुछ हव्य या कव्य अग्नि पर आहुति करेंगें, जिस से आप अग्नि के साथ हमेशा वास कर सकती हो ।

तब से लेकर अग्नि पर आहुति देते समय "स्वाहा" का प्रयोग होने लगा । इस वर को स्कन्द ने दिया स्वाहा क् ई इच्छा पर ।

Svaha says to Skanda, “O Skanda! I am Svaha, the lovely daughter of Daksha. I love Agni from my childhood. But, Agni didn’t know this that I am in love with him. I wish to be with Agni always”.

Skanda replied, “From today onwards, the Brahmins whatever they sacrifice in Agni with chanting Svaha; so that you could always be with Agni.  

Thus, from that day onwards chanting of “Svaha” come into effect. This boon was given by Skanda to Svaha.

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