महाभारते सभापर्वणि युधिष्ठिरः नारदं पृच्छति –
कथं वै सफला वेदाः कथं वै सफलं धनम् ।
कथं वै सफला दाराः कथं वै सफलं श्रुतम् ॥१००॥
नारदः उत्तरं ददाति –
अग्निहोत्रफला वेदाः दत्तभुक्तफलं धनम् ।
रतिपुत्रफला दाराः शीलवृत्तफलं श्रुतम् ॥१०१॥
वेदानां, धनस्य, पत्न्याः, विद्यायाः च किं साफल्यम् इति प्रश्नम् अपृच्छत् युधिष्ठिरः । नारदः तस्य
उत्तरं दत्तवान् - अग्निहोत्रादियागेन वेदाः, दानेन भोगेन च धनं, रतिद्वारा सन्तानद्वारा च पत्नी, उत्तमचरित्रेण विद्या च
सफलाः जायन्ते ।
युधिष्ठिर के प्रश्न थे नारद के प्रति कि वेदों की सफलता कैसी है ? धन की सफलता कैसी है?
पत्नी कैसे सफल होती है?
और विद्या (श्रुत) की सफलता
कैसी है?
नारद उत्तर देते हैं कि वेदों का फल है अग्निहोत्र आदि याग करना । धन की सफलता
है कि दान करना और भोग करना ।पत्नी की सफलता है कि रति और सन्तान देना । विद्या का
फल है कि शुद्ध चरित्रवान् होना ।
Yudhishthira
asked Narada – How do Vedas become fruitful? How does the money become
fruitful? How do the wives become fruitful? And How does the learning become
fruitful?
Narada answers
these questions thus – Vedas become fruitful by offering sacrifices such as
Agnihotra. Money becomes fruitful by giving away and enjoying. Wives become
fruitful by Dharma-Rati and beget children. Learning is fruitful by being a
person of Good Character.
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1 comment:
Good explanation in sanskrit, hindi, and english too
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