Friday, February 6, 2015

SRI RAMAS VOW

SRI RAMA'S VOW


स्नेहं दयां च सौख्यं च यदि वा जानकीमपि ।आराधनाय लोकस्य मुञ्चतो नास्ति मे व्यथा ॥(UTTARARAMACARITAM-IACT)
 श्रीरामः अष्टावक्रम् इत्थं प्रतिशृणोति । लोकस्य कल्याणाय मैत्रीं, करुणां, सौकर्यं, पत्नीं जनककुमारीं जानकीमपि (यदि मुञ्चतः) त्यजतः मम कदापि व्यथा नास्ति । हिन्दी - श्रीराम ने अष्टवक्र ऋषि से कहते हैं कि प्रजाओं के हित के लिए मैं अपनी दोस्ती, दया, सारे सुख सौख्य और मेरी पत्नी जनक की कुमारी सीता को भी छोडने के लिए तैयार हूं । उस से मेरा कोई दुःख नहोँ होगा ॥ लोकस्य = जनानां, आराधनाय = कल्याणाय​, स्नेहं = मैत्रीं, दयां = करुणां, यदि वा = जरूरत पड्ने पर​, जानकीम् अपि = मेरी पत्नी जानकी को भी, मुञ्चतः = त्यागात्, मे = मम, व्यथा = दुःखं​, न अस्ति = न भवति ॥रामस्य दयिता भार्या नित्यं प्राणसमा हिता ॥विशेषः -
स्नेहः = शरीरं वसु विज्ञानं मित्रार्थे सम्परित्यजेत् - ऐसे कहा गया है । इस लिए स्नेह उत्तम माना जाता है ।दया = दया उस से भी बडी है, क्यों कि इस के लिए अपना पराया नहीं देखी जाती है ।सौख्यं = निजी होने से उसे त्यागना बहुत असम्भव हैपत्नी = हाथ पकडते समय (विवाह के समय​) आ जीवन आप के साथ रहूंगा ऐसे वचन दिया जाता है, इसे यह भी छोडना बडी बात है ।व्यथा = मानसिक पीडा भी नहीं है । For the sake of public worship (public welfare), I will have no pain in abandoning my friendship, mercy, all comforts and even my wife Janaki.


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