MIMAMSAA VICAARA
If You (as a father)
advice your child that If at all You wish to eat Chocolate eat only “X” brand
but not “Y” brand. What does this sentence mean? Here, essence of this sentence
is “Prohibiting the child from chocolate” and not actually as suggested by the
later part of the sentence, you can eat “X” instead if “Y” In fact, you don’t
want your child to eat chocolate at all. Caring his health factor if at all you
can not leave that habit, then eat “Y” brand. It does not mean that you
willingly advised your child to eat “Y” brand. Thus, eating “Y” brand chocolate
is not your advice at all. Your advice is – Do not eat any chocolate.
This is known as परिसंख्याविधि in Mimamsa and
other Shastras. Let us now explain that Rule of परिसंख्या. There is a sentence
"पञ्च पञ्चनखाः भक्ष्याः". It literally means if
we go by word by word meaning that Five Animals Each With Five Nails Shall be
Eaten. If take this literal meaning any one is eligible to eat the flesh Five
Animals with Five Nails. Of course, it is enumerated in Shastras which animals
have five nails. They are - शशकः
शल्लकी गोधा खड्गी कूर्म्मश्च पञ्चमः
॥ 1) Rabbit/Hare, 2)
Porcupine, 3) Crocodile, 4) Rhinoceroses, and Tortoise, only thse Five Five
Nails among Forest Animals. So pet or Village animals should not be eaten.
Here, from this sentence, one
cannot derive meaning that one can eat Five Animals with Five Nails. Because,
the Rule’s spirit is in prohibiting one from eating any animal’s flesh. That is
the reason in Mimamsa Shastra it decided that the meaning of this परिसंख्याविधि is in prohibiting from eating animal flesh.
See, how minutely in those days, Sasnkrit Shastraic
Scholars entered into a debate to decide the meaning of a sentence. That is
reason Mimamsa is known as वाक्यशास्त्र meaning वाक्यार्थनिर्णयशास्त्र.
Of course, there is another discussion regarding Three
Errors in this परिसंख्याविधि. Let me not explain
due to fear of over dose.
भवान् तव शिशुं
वदति यदि भवान् चाकलेहं खादितुमिच्छति तर्हो "X" न खादनीयं, परन्तु "Y" चाकलेहं खादेत्
इति अस्य वाक्यसिअ किं तात्पर्यम् इति विचारयामः । आपाततः चिन्त्यमाने भावान्
शिशुं चाकलेहं खादितुम् अनुमन्यते इति । परन्तु भवतः अभिप्रायः न तथा । यतः भावान्
इच्छति शिशुः चाकलेहम् एव खादेत् इति प्रतिषेधे एव तात्पर्यम् । परन्तु यदि सर्वथा
खादितुम् इच्छा जागरिता भवेत् तर्हि "Y" चाकलेहमेव खादेत् इति तात्पर्यम् ।
एतत्-सन्बन्धः
किञ्च वाक्यं मीमांसा शास्त्रे विचार्यते । तद्यथा - पञ्च पञ्चनखाः भक्ष्याः इति
विधिवाक्यम् । अयं विशिः परिसंख्याविशिः इति ज्ञायते । अर्थात् यदि भवान्
मांसभक्षणं कर्तुमिच्छति तर्हि पञ्च एन प्राणिविशेषाः प्रत्येकं पञ्चनखयुक्ताः एव
खादनीयाः इति अर्थः आपाततः अवलोक्यते चेद् प्रतीयते । परन्तु अत्र तात्पर्यं तावत्
- न कश्चित् मांसभक्षणं कुराद् इत्यत्र एव । तथा च एतस्य विधेः मांसभक्षणनिषेधे एव
तात्पर्यम् इति सिद्धम् ।
अत्र अपर कश्चन विचारः
वर्तते परिसंख्याविधिः दोषत्रयेण दूषिता इत् । स च विचारः अत्र न प्रस्तोओयते ।
पिता पुत्र को
परार्शदेता है कि यदि आप को चाकलेट् खाने की इच्छा हुई तो "X" ब्राण्ट् नहीं खाना "Y" ब्राण्ट् ही खाना
। इस वाक्य का क्या तात्पर्य है?
इस वाक्य को ऊपर से देखेंगें
तो "Y" ब्राण्ट् चाकलेट् खाइए - ऐसा अर्थ निकलता है ।
वस्तुतः पिता जी चाहते हैं कि आरोग्य की दृष्टि से शिशु को चाकलेट् ही खाना नहीं
चाहिए? अर्थात वाक्य के अर्थों पर घोर करेंगें तो यही अर्थ निकलेगा
। अर्थात् इस वाक्य वास्तविक तात्पर्य है चाकलेट् खाने से रोकना/प्रतिषेध करना ।
इसी प्रकार के एक
वाक्य को लेकर मीमांसा शास्त्र में विचार किया गया है । जैसे एक वाक्य है - पञ्च
पञ्चनखाः भक्ष्याः । इस वाक्य का ऊपर से तात्पर्य निकालेंगें तो पाञ्च नखवाले पांच
पशुवों खा सकते है । वे पांच है घडियाल्, खरगोश्, कछुआ, साही, और गैंडा । किं तु इस
विधि का तात्पर्य यह नहीं है । इस वाक्य का वास्तविकार्थ है कि मांस को नहीं खाना
चहिए । जो व्यक्ति मांस खाने के अभ्यास को छोड नहीं सकता, वह यदि खाना चाहता है तो इन पांच नखवाले पांच को खा सकता है । अर्थात् इस
वाक्य का तात्पर्य है कि मांस भक्षण का निषेध ।
यहां पर और एक
विचार है कि परिसंख्याविधि तीन दोषों से ग्रसित है । वह विषय यहां उपास्थापित नहीं
कर रहा हूं, भोज की दृष्टि से ॥
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Here, from this sentence, one
cannot derive meaning that one can eat Five Animals with Five Nails. Because,
the Rule’s spirit is in prohibiting one from eating any animal’s flesh. That is
the reason in Mimamsa Shastra it decided that the meaning of this परिसंख्याविधि is in prohibiting from eating animal flesh.
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